समान नागरिक संहिता Uniform Civil Code (UCC) क्या है

यूनिफॉर्म सिविल कोड (UCC) का मतलब है, भारत में रहने वाले हर नागरिक के लिए एक समान कानून होना, चाहे वह किसी भी धर्म या जाति का क्यों हो. यानी हर धर्म, जाति, लिंग के लिए एक जैसा कानून. अगर सिविल कोड लागू होता है तो विवाह, तलाक, बच्चा गोद लेना और संपत्ति के बंटवारे जैसे विषयों में सभी नागरिकों के लिए एक जैसे नियम होंगे

क्या भारतीय संविधान का हिस्सा है UCC ? 

हां, समान नागरिक संहिता भारत के संविधान के अनुच्छेद 44 का हिस्सा है. संविधान में इसे नीति निदेशक तत्व में शामिल किया गया है. संविधान के अनुच्छेद 44 में कहा गया है कि सभी नागरिकों के लिए समान नागरिक संहिता लागू करना सरकार का दायित्व है. अनुच्छेद 44 उत्तराधिकार, संपत्ति अधिकार, शादी, तलाक और बच्चे की कस्टडी के बारे में समान कानून की अवधारणा पर आधारित है.

UCC पर सुप्रीम कोर्ट का क्या कहना है?

सुप्रीम कोर्ट ने अपने कई फैसलों में समान नागरिक संहिता लागू करने को कहा है. 1985 में शाहबानो के मामले में फैसला देते हुए सुप्रीम कोर्ट ने कहा था, 'संसद को एक समान नागरिक संहिता की रूपरेखा बनानी चाहिए, क्योंकि ये एक ऐसा साधन है जिससे कानून के समक्ष समान सद्भाव और समानता की सुविधा देता है.https://www.youtube.com/watch?v=ofppGi7fmBI

सुप्रीम कोर्ट ने 2015 में एक मामले में कहा था, ईसाई कानून के तहत ईसाई महिलाओं को अपने बच्चे का 'नैचुरल गार्जियन' नहीं माना जा सकता, जबकि अविवाहित हिंदू महिला को बच्चे का 'नैचुरल गार्जियन' माना जाता है. उस समय सुप्रीम कोर्ट ने माना था कि समान नागरिक संहिता एक संवैधानिक जरूरत है.

2020 में लैंगिक समानता सुनिश्चित करने के लिए सुप्रीम कोर्ट ने हिंदू उत्तराधिकार कानून में 2005 में किए गए संशोधन की व्याख्या की थी. अदालत ने ऐतिहासिक फैसले में बेटियों को भी बेटों की तरह पैतृक संपत्ति में समान हिस्सेदार माना था. दरअसल 2005 में हिंदू उत्तराधिकार कानून,1956 में संशोधन किया गया था. इसके तहत पैतृक संपत्ति में बेटियों को बराबरी का हिस्सा देने की बात कही गई थी.

समान नागरिक संहिता की राह में क्या हैं पेच

आजादी के 75 साल में एक समान नागरिक संहिता और पर्सनल लॉ में सुधारों की मांग होती रही है. हालांकि, समान नागरिक संहिता को लागू करने में कई चुनौतियां हैं. धार्मिक संगठनों का विरोध, राजनीतिक सहमति बन पाने के कारण ऐसा अब तक नहीं हो सका है  भारत धर्मनिरपेक्ष देश है, यहां सभी धर्मों को स्वतंत्र रूप से मानने, अभ्यास करने और प्रचार करने का अधिकार है. इसे संविधान के अनुच्छेद 25 में शामिल किय गया है. UCC का विरोध करने वालों का मानना है कि सभी धर्मों के लिए समान कानून के साथ धर्म की स्वतंत्रता के अधिकार और समानता के अधिकार के बीच संतुलन बनाना मुश्किल होगा. इसके चलते धर्म या जातीयता के आधार पर कई व्यक्तिगत कानून भी संकट में जाएंगे

समान नागरिक संहिता का विरोध करने वाले कहते हैं कि इससे सभी धर्मों पर हिंदू कानूनों को लागू कर दिया जाएगाhttps://www.youtube.com/watch?v=ofppGi7fmBI

अगस्त 2018 में 21वें विधि आयोग ने अपनी रिपोर्ट में लिखा था, 'इस बात को ध्यान में रखना होगा कि इससे हमारी विविधता के साथ कोई समझौता हो और कहीं ये हमा ये हमारे देश की क्षेत्रीय अखंडता के लिए खतरे का कारण बन जाए.

समान नागरिक संहिता का प्रभावी अर्थ शादी, तलाक, गोद लेने, उत्तराधिकार और संपत्ति का अधिकार से जुड़े कानूनों को सुव्यवस्थित करना होगा 21वें विधि आयोग ने कहा था कि इसके लिए देशभर में संस्कृति और धर्म के अलग-अलग पहलुओं पर गौर करने की जरूरत होगी.

प्रॉपर्टी, उत्‍तराधिकार और अन्‍य कई मामलों में भी अलग-अलग धर्मों के लिए अलग-अलग तरह के कानून हैं. UCC लागू होने के बाद ये सभी खत्म हो जाएंगे. ऐसे में अलग अलग धर्मों का अलग अलग बिंदुओं पर विरोध है

अगर UCC लागू होता है तो क्या-क्या बदलाव होंगे?

UCC के लागू होते ही हिंदू (बौद्धों, सिखों और जैनियों समेत), मुसलमानों, ईसाइयों और पारसियों को लेकर सभी वर्तमान कानून निरस्त हो जाएंगे

अगर UCC लागू होता है, तो देशभर में सभी धर्मों के लिए विवाह, तलाक, बच्चा गोद लेने और संपत्ति के बंटवारे जैसे विषयों में सभी नागरिकों के लिए एक जैसे नि नियम होंगे.https://www.youtube.com/watch?v=ofppGi7fmBI

 

 

 

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